राष्ट्रीय प्रस्तावना न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ: आज संविधान दिवस की 75वी वर्षगांठ पर अंग्रेज़ों की ग़ुलामी व अग्रेंजी हुकूमत के खिलाफ़ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 से अंग्रेज़ों से आज़ादी के बाद 26 नवम्बर 1949 भारतीय संविधान को अंगीकृत किए जाने तक संघर्षों को याद दिलाने वाली संविधान यात्रा का आयोजन पारख महासंघ के तत्वाधान में वीरांगना ऊदा देवी की प्रतिमा से डॉ अम्बेडकर की प्रतिमा तक किया गया । इस यात्रा के प्रारम्भ होने के पहले पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री एवं पारख महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौशल किशोर ने अपने संबोधन में कहा कि 1857 के प्रथम आज़ादी के संग्राम में लखनऊ में बेगम हजरत महल की महिला सेना की कमाण्डर वीरांगना ऊदा देवी ने जहाँ अंग्रेज़ सैनिक युद्ध के दौरान पीपल के पेड़ के नीचे रखें घड़ों में पानी पीने आते थे उस पीपल के पेड़ पर छिपकर 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मार कर अपने शहीद पति मक्का पासी का बदला लिया था इतिहास में पति पत्नी अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी शहादत देने का इतिहास कम मिलता है अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ 90 वर्ष तक अनवरत युद्ध लड़ने के चार लाख से ज़्यादा लोगों ने अपनी जान की क़ुर्बानी दी थी और कई लाख लोगों ने जेलों में अपनी कठिन ज़िंदगी काटी थी । आज़ादी के बाद भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान को 25 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद व जवाहरलाल नेहरू व सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपा था 26 नवंबर 1949 भारतीय संविधान अंगीकृत किया गया परन्तु संविधान दिवस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2015 को घोषित किया तबसे संविधान दिवस मनाया जाता है आज की संविधान यात्रा आज़ादी के आंदोलन में शहीद हुए क्रांतिकारियों को समर्पित है।
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